Remembering Lt. Shashank Tiwari : A Tale of Courage and Sacrifice That Moved the Nation

Remembering Lt. Shashank Tiwari : A Tale of Courage and Sacrifice That Moved the Nation
24-May 2025...........

लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी, भारतीय सेना की सिक्किम स्काउट्स रेजिमेंट के एक युवा अधिकारी, ने अद्वितीय साहस और भाईचारे का परिचय देते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया। मात्र 23 वर्ष की आयु में उन्होंने उत्तर सिक्किम की खतरनाक पहाड़ी धारा में बह रहे एक साथी सैनिक को बचाने के प्रयास में अपनी जान गंवा दी। उनका यह साहसी कार्य न केवल वीरता का प्रतीक है, बल्कि भारतीय सेना की मूल भावना—साहस, निःस्वार्थता और एकता—की जीवंत मिसाल भी है। लेफ्टिनेंट तिवारी की यह कहानी पूरे देश के लिए प्रेरणा का एक अमिट स्रोत बन चुकी है और हमेशा रहेगी।

प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

शशांक तिवारी पवित्र नगरी अयोध्या के निवासी थे—एक ऐसा शहर जो सेवा और बलिदान की महान परंपराओं में गहराई से रचा-बसा है। एक देशभक्त परिवार में पले-बढ़े शशांक को बचपन से ही वीरता और समर्पण की कहानियों से प्रेरणा मिलती रही। देश की सेवा का सपना उन्हें इतनी गहराई से छू गया कि उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) की प्रवेश परीक्षा में अखिल भारतीय रैंक (AIR) 463 हासिल की, जो उनकी शैक्षणिक अनुशासन और अटूट प्रतिबद्धता का परिचायक है। उन्हें NDA के 145वें और 146वें दोनों कोर्सों में चयनित किया गया—जो उनकी निरंतरता और समर्पण की गवाही देता है।

सेंचुरियन डिफेंस अकैडमी में प्रशिक्षण के दौरान, उनके प्रशिक्षकों ने उन्हें एक विनम्र, अत्यंत केंद्रित और सदैव नेतृत्व के लिए तत्पर विद्यार्थी के रूप में याद किया। शशांक के लिए सेना की वर्दी पहनना कभी भी शक्ति या पद का प्रतीक नहीं था, बल्कि यह राष्ट्र की सुरक्षा के लिए एक पवित्र उत्तरदायित्व था। लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी को पिछले वर्ष भारतीय सेना में नियुक्त किया गया था, और उनकी पहली पोस्टिंग चुनौतीपूर्ण क्षेत्र सिक्किम में हुई थी।

सैनिक करियर

 

14 दिसंबर 2024 को सिक्किम स्काउट्स रेजीमेंट में कमीशन प्राप्त करने के बाद, लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी ने उस यूनिट में अपनी सेवाएँ प्रारंभ कीं, जो देश के सबसे दुर्गम और चुनौतीपूर्ण पर्वतीय क्षेत्रों की रक्षा की ज़िम्मेदारी निभाती है। सिक्किम स्काउट्स, जो कि 11 गोरखा राइफल्स से जुड़ी एक विशिष्ट उच्च-ऊंचाई वाली इन्फैंट्री फोर्स है, पहाड़ी भू-भाग में सटीकता और दृढ़ता के लिए जानी जाती है।

यद्यपि उनकी सक्रिय सेवा मात्र छह महीनों से भी कम समय तक रही, लेफ्टिनेंट तिवारी ने अपनी कर्मठता, साहस और समर्पण से एक अमिट छाप छोड़ दी। संकट की घड़ी में उनका संयम और निर्भीकता अनुकरणीय थी। सहकर्मी और वरिष्ठ अधिकारी, दोनों ही उन्हें एक ऐसे अधिकारी के रूप में देखते थे, जो केवल नेतृत्व ही नहीं करता था, बल्कि अपने साथियों की सुरक्षा भी पूरे साहस और संवेदनशीलता के साथ करता था।

संकट का क्षण

22 मई 2025 को, लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी उत्तर सिक्किम के एक सामरिक संचालन आधार (Tactical Operating Base) की ओर एक रूट ओपनिंग पेट्रोल का नेतृत्व कर रहे थे। यह क्षेत्र अपने भीषण मौसम और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के लिए जाना जाता है। लगभग सुबह 11:00 बजे, जब गश्ती दल एक तेज़ बहाव वाली पहाड़ी नदी पर बने संकरे लकड़ी के पुल को पार कर रहा था, तभी अग्निवीर स्टीफन सुब्बा फिसलकर बर्फीले पानी की तेज़ धार में बहने लगे।

लेफ्टिनेंट तिवारी ने एक पल की भी देर किए बिना अपनी जान की परवाह किए बगैर नदी में छलांग लगा दी ताकि वे अपने साथी को बचा सकें। उनके इस प्रयास में नाइक पुकार काटेल भी तुरंत मदद के लिए कूद पड़े। असाधारण टीमवर्क और वीरता का परिचय देते हुए, वे दोनों अग्निवीर को सुरक्षित निकालने में सफल रहे।

दुर्भाग्यवश, इस प्रक्रिया में लेफ्टिनेंट तिवारी तेज़ बहाव की चपेट में आकर दूर बह गए। पूरी गश्ती टीम द्वारा अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका और लगभग तीस मिनट बाद उनका शव घटनास्थल से 800 मीटर नीचे पाया गया।

भारतीय सेना ने लेफ्टिनेंट तिवारी के इस अद्वितीय बलिदान को सम्मानित किया, और उनके नेतृत्व, साहस तथा अपने साथियों के प्रति उनकी अटूट निष्ठा को नमन करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

प्रतिक्रिया और देशव्यापी श्रद्धांजलि

लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी के बलिदान की गूंज पूरे देश में सुनाई दी। भारतीय सेना की ईस्टर्न कमांड ने उन्हें औपचारिक रूप से श्रद्धांजलि अर्पित की, और लेफ्टिनेंट जनरल आर.सी. तिवारी ने व्यक्तिगत रूप से उनके परिवार से मिलकर शोक संवेदनाएं प्रकट कीं। इस मुलाकात ने सेना की अडिग एकजुटता और अपने वीर सपूतों के प्रति सम्मान को पुनः सुदृढ़ किया।

23 मई को लेफ्टिनेंट तिवारी का अंतिम संस्कार पूरे सैन्य सम्मान के साथ दिल्ली स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर किया गया। उनका नाम अब भारत के सबसे वीर सैनिकों के नामों के साथ अमर हो गया है—एक ऐसा सम्मान जो उनके अदम्य साहस का स्थायी स्मारक बन गया है।

देशभर से सैनिकों, नागरिकों और नेताओं द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। हर स्वर, हर संदेश में यही सच्चाई प्रतिध्वनित होती रही—कि लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी ने किसी और की जान बचाने के लिए अपनी जान दे दी। उनका यह बलिदान केवल कर्तव्य नहीं, बल्कि एक पवित्र संकल्प की तरह है—जो मानवता की सबसे ऊँची भावना को दर्शाता है।

 

परिवार की प्रतिक्रिया और संवेदनाएँ

लेफ्टिनेंट तिवारी अपने माता-पिता और बहन को पीछे छोड़ गए हैं—एक ऐसा अपूरणीय क्षति जिसे शब्दों में बयां करना असंभव है। फिर भी इस गहरे शोक में गर्व की भावना भी समाई हुई है। एक पारिवारिक मित्र ने भावुक स्वर में कहा, "वो अपने सपनों को जीया और जिन आदर्शों में विश्वास करता था, उनके लिए प्राण न्यौछावर कर दिए। हमने एक बेटा खोया हैलेकिन देश ने एक वीर प्राप्त किया है।"

सेंचुरियन डिफेंस एकेडमी में उनके मेंटर्स उन्हें आज भी "अयोध्या का शेरदिल सपूत" कहकर याद करते हैं—एक ऐसा सैनिक जो शांतिपूर्ण आत्मबल से परिपूर्ण था और जब भी कर्तव्य ने पुकारा, अडिग और निडर खड़ा रहा।

उनका जीवन, उनका समर्पण और उनका बलिदान न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए प्रेरणा का स्तंभ बन चुका है।

महानतम योगदान

हालाँकि वर्दी में उनका समय अल्पकालिक था, लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी की विरासत आज भी जीवंत है। उनका नाम अब राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर अंकित है—एक असाधारण साहस का प्रतीक। देश भर में रक्षा सेवाओं की तैयारी कर रहे युवा उन्हें एक सच्चे आदर्श के रूप में देखते हैं—एक ऐसे वीर, जिन्होंने भारतीय सेना के मूल्यों को न केवल जिया, बल्कि उन्हें करुणा और दृढ़ विश्वास के साथ निभाया।

उनके गृहनगर में उन्हें अमर करने की आवाज़ें उठ रही हैं—चाहे वह किसी सड़क का नाम उनके नाम पर रखा जाए या किसी शैक्षणिक संस्थान को उनके नाम से जोड़ा जाए। जो भी रूप हो, ये श्रद्धांजलियाँ उनकी गाथा को जीवित रखेंगी, आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेंगी।

लेफ्टिनेंट तिवारी का अंतिम कार्य उस अटूट भाईचारे और अदम्य समर्पण का प्रतिबिंब है, जो भारतीय सेना की आत्मा का मूल है। उन्होंने उस सच्चाई को जिया कि एक सैनिक की लड़ाई शत्रु के प्रति घृणा से नहीं, बल्कि उस प्रेम से संचालित होती है जो वह जिनकी रक्षा करता है—अपने साथियों, अपने मातृभूमि, अपने देशवासियों के प्रति रखता है।

एक साथी सैनिक के लिए अपना जीवन न्योछावर करके, लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी वर्दी से कहीं आगे निकल गए—वो राष्ट्र की आत्मा का हिस्सा बन गए।

संक्षेप

लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी की वीरता भारत की यात्रा का एक अमर पद है—जो पर्वतीय धाराओं में उकेरा गया है और एक सैनिक की गरिमा से अमिट किया गया है। उनका बलिदान हमें इस स्वतंत्रता की कीमत समझने का संदेश देता है और हमें प्रेरित करता है कि हम उन रक्षकों को नमन करें जो इसकी रक्षा में अक्सर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं।

उनकी विरासत हम सभी को यह याद दिलाती है कि आज़ादी केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है—जिसे ऐसे वीरों के त्याग से सींचा गया है।


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